कंडोम सिर्फ परिवार नियोजन तक ही सीमित नहीं, प्रसव के दौरान जान बचाने में भी है कारगर,जानिए कैसे
लखनऊ। कंडोम सिर्फ परिवार नियोजन तक ही सीमित नहीं है। यह महिलाओं की जान बचाने में भी कारगर है। इससे प्रसव के वक्त जख्मी बच्चेदानी की नसों को चंद घंटे में दुरुस्त किया जा सकता है। ऐसे में पोस्टपार्टम हेमरेज का शिकार हुईं महिलाओं में कंडोम का उपयोग अव्वल साबित हो रहा है। इसके साथ ही बाजार से 'बलून टेंपोनेड' सिस्टम खरीदने का झंझट भी खत्म हो गया है।
63वीं ऑल इंडिया कांग्रेस ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी (एआइसीओजी) कार्यशाला में क्वीनमेरी की डॉ. मोनिका अग्रवाल ने 'लेबर टू ओटी' पर चर्चा की। इस दौरान प्रसव के खतरों से निबटने के उपाए सुझाए। डॉ. मोनिका अग्रवाल के मुताबिक, कई महिलाएं प्रसव के दरम्यान पोस्ट पार्टम हेमरेज (पीपीएच) का शिकार हो जाती हैं। इसमें बच्चेदानी से भयावह रक्तस्राव शुरू हो जाता है। यह ब्लीडिंग महिलाओं के लिए जानलेवा बन जाती है मगर, पीपीएच में यूट्राइन बलून टेंपोनेड के जरिए रक्तस्राव थामा जा सकता है। यह बेहद सस्ता व किफायती इलाज है। क्वानमेरी में प्रसूताओं पर प्रयोग काफी सफल रहा।
सलाइन भर कर यूट्रस में फुलाया कंडोम
डॉ. मोनिका अग्रवाल ने बताया कि यूट्राइन बलून टेंपोनेड प्रक्रिया काफी सरल है। इसमें एक कैथेटर लेते हैं। इस पर कंडोम को चढ़ाकर यूट्रस (बच्चे दानी) में ले जाते हैं। इसके बाद कंडोम में नॉर्मल सलाइन भरकर उसे फुला देते हैं। यह कंडोम बच्चेदानी की अंदरूनी भित्त पर चिपक जाता है। सलाइन भरी होने से भित्त पर प्रेशर पड़ता है। 24 घंटे कंडोम लगे रहने से जख्मी नसें दुरुस्त हो जाती हैं। महिला में रक्तस्राव थम जाता है। इसके बाद कंडोम को निकाल दिया जाता है।
क्या हैं रक्तस्राव के कारण
डॉ. मोनिका अग्रवाल के मुताबिक, पोस्टपार्टम हेमरेज के चार मुख्य कारण होते हैं। इन्हें फोर टी (टोन, टिश्यू, टॉमा व थांब्रिन) कहते हैं। देखा गया है कि 90 फीसद केस में यूट्राइन बलून टेंपोनेड से रक्तस्राव ठीक हो जाता है। वहीं शेष में धमनी को बांधकर (लाइगेशन), एंबुलाइजेशन और ऑपरेशन करना पड़ता है। इलाज में देरी पर मरीज शॉक में चली जाती है। सामान्य प्रसव में चार फीसद व सिजेरियन प्रसव में छह फीसद प्रसूताएं पोस्ट पॉर्टम हेमरेज का शिकार हो जाती हैं।
प्रसूताओं के लिए तो जीवन रक्षक है ऑक्सीटोसिन
63वीं ऑल इंडिया कांग्रेस ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी-2020 का मंच काफी अहम होता है। इस पर महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े हर छोटे-बड़े विषयों पर न केवल चर्चा होती है बल्कि उसका निचोड़ रोड मैप तैयार करने में भी मददगार होता है। ये कहना है एआइसीओजी की साइंटिफिक चेयरपर्सन व क्वीन मेरी अस्पताल की वरिष्ठ चिकित्सक डॉ.उमा सिंह का।
उन्होंने ऑक्सीटोसिन पर प्रतिबंध से स्त्री रोग विशेषज्ञों को हो रही परेशानी पर सबका ध्यान आकृष्ट कराया। कहा कि यह सही है कि इसके गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए प्रतिबंधित किया गया है लेकिन प्रसव के दौरान इसका इस्तेमाल लाइफ सेविंग ड्रग के तौर पर किया जाता है। ऐसे में स्त्री रोग विशेषज्ञों के समक्ष इसका प्रबंध करना चुनौती साबित हो रहा है। इसी प्रकार मेडिकोलीगल मामलों से किस तरह संगठित होकर निपटा जाए जैसी अन्य समस्याओं पर भी इसी मंच पर चर्चा होती है। उन्होंने उम्मीद जताई कि एआइसीओजी-2020 सफल रहेगी।
Source JNN
Comments
Post a Comment